Yamunotri Dham History in Hindi यमनोत्री धाम का इतिहास
(यमनोत्री धाम )
हिमालय के पर्वत में बसा ” यमुनोत्री धाम “ हिन्दुओ के चारधामों में से एक है। यमुनोत्री भारत के उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिले में स्थित है। उत्तरकाशी से 131 किमी, ऋषिकेश से 216 किमी और हरिद्वार से 226 किमी सड़क मार्ग से जुड़ा है। समुद्रतल से 3185 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह मंदिर चारधाम यात्रा का पहला पड़ाव है। अर्थात यात्रा की शुरूआत इस स्थान से होती है। महाभारत के अनुसार जब पाण्डव उत्तराखंड की तीर्थयात्रा में आए तो वे पहले यमुनोत्री, गंगोत्री फिर केदारनाथ – बद्रीनाथजी की ओर बढ़े थे, तभी से उत्तराखंड की यात्रा वामावर्त की जाती है।
यमुनोत्री का वास्तविक स्त्रोत जमी हुई बर्फ़ की एक झील और हिमनंद (चंपासर ग्लेसियर) है जो समुद्र तल से 4421 मीटर की ऊँचाई पर कालिंद पर्वत पर स्थित है। एक और कथा के अनुसार, यह भी कहा जाता है कि इस स्थान पर “संत असित” का आश्रम था।
यमुनोत्री मंदिर का निर्माण
यमुनोत्री मंदिर का निर्माण टिहरी गढ़वाल के महाराजा प्रतापशाह ने सन 1919 में बनवाया था। भूकम्प से एक बार इसका विध्वंस हो चुका है, जिसका पुर्ननिर्माण जयपुर की “महारानी गुलेरिया” के द्वारा 19वीं सदी में करवाया गया था।
यमनोत्री मंदिर का इतिहास
पुराणों में उल्लेख है, कि यमुना सर्वप्रथम जलरूप से कलिंद पर्वत पर आयी, इसलिए इनका एक नाम कालिंदी भी है। कलिंद सुर्य भगवान का दुसरा नाम है। इस प्रकार यमुना सूर्य की पुत्री हुई।
एक प्रचलित मान्यता के अनुसार
भगवान सूर्य की दो संतान थी यम और यमुना। यमुना नदी के रूप में पृथ्वी पर बहने लगी और यमराज को मृत्यु लोक मिला मान्यता है कि यमुना ने अपने भाई यमराज से भाई दूज के दिन वरदान माँगा की जोभी व्यक्ती भाई दूज के दिन यमुना में स्नान करे उसे यमलोक न जाना पड़े इस लिए ऐसा माना जाता हे, की जो कोई व्यक्ति पवित्र निर्मल जलधारा में स्नान करता है वो अकाल मृत्य के भय से मुक्त हो कर मोक्ष प्राप्त करता हैं। इस मंदिर में मृत्यु के देवता यमराज अपनी छोटी बहन यमुना के साथ विराजमान हे।
जब यमुनोत्री में प्रकट हुई गंगा ( YAMUNOTRI-GANGOTRI STORY )
यमुनोत्री मंदिर की पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में यहा “संत असित” का आश्रम था। उनका एक नित्य नियम था कि, वह हर एक दिन प्रातः स्नान के लिए गंगोत्री जाते थे लेकिन धीरे धीरे वृद्धावस्था के कारन उनके लिए गंगोत्री के मार्ग के दुर्गम पर्वतो को पार करना मुस्किल हो गया तब माँ गंगा ने अपना एक छोटा सा झरना असित ऋषि के आश्रम में प्रकट कर दिया यह जरणा आज भी यंहा मौजूद हैं कहते हे गंगा और यमुनाकि जलधारायें एक हो गई होती यदि दोनों क बिच दंड पर्वत न होता।
सूर्य कुंड : ( surya kund )
यमुना पावन नदी का स्रोत कालिंदी पर्वत है। पानी के मुख्य स्रोतों में से एक सूर्यकुण्ड है जो गरम पानी का स्रोत है। सूर्यकुंड अपने उच्चतम तापमान के लिए विख्यात है।
यमनोत्री मंदिर के पास एक गर्म जल की धारा का कुण्ड मौजूद हैं। कहा जाता हे की अपनी पुत्री यमुना को आशीर्वाद देने के लिए सूर्य भगवान ने स्वयं गर्मजल धारा का रूप धारण किया है। पहाड़ो के शिखर पर जमा देने वाली इस शर्दी में भी इस कुंड का पानी खौलता रहता हे।
भक्तगण यमुना देवी को प्रसाद के रूप में चढ़ाने के लिए कपडे की पोटली में चावल और आलू बांधकर इसी कुंड के गर्म जल में पकाते है। देवी को प्रसाद चढ़ाने के पश्चात इन्ही पकाये हुए चावलों को प्रसाद के रूप में भक्त गण अपने अपने घर ले जाते हैं।
यमुना देवी के मंदिर की चढ़ाई का मार्ग वास्तविक रूप में दुर्गम और रोमांचित करने वाला है। मार्ग पर अगल-बगल में स्थित गगनचुंबी, मनोहारी बर्फीली चोटियां तीर्थयात्रियों को मनमोहित कर देती हैं। इस दुर्गम चढ़ाई के आस-पास घने जंगलो की हरियाली मन को मोह लेती है। सूर्यकुंड के निकट ही एक शिला है। जिसे दिव्य शिला कहते हैं। इस शिला को दिव्य ज्योति शिला भी कहते हैं। भक्तगण भगवती यमुना की पूजा करने से पहले इस शिला की पूजा करते हैं।
अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर मंदिर के कपाट खुलते हैं और दीपावली (अक्टूबर-नंवबर) के पर्व पर बंद हो जाते हैं।
‘ इसके साथ ही जय हो यमनोत्री धाम की, जय हो यम राजा की, जय हो यमुना देवी की ‘
निष्कर्ष
हमने History of Yamunotri dham के बारे में लगभग सब कुछ बता दिया हे। फिर भी कोई कमी या खामी रह गई हो या कुछ अधूरा हो तो उसके लिए क्षमा चाहता हूँ। क्यूंकि लोक कथाये हमारी बहुत ही विस्तार से होती है फिर भी आप हमें Comment करके बता सकते है।
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