badrinath dham

बद्रीनाथ धाम का इतिहास History of Badrinath Dham

 

बद्रीनाथ धाम का इतिहास History of Badrinath Dham

बद्रीनाथ धाम को बद्रीनारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के किनारे स्थित हैं। यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप में बद्रीनाथ को समर्पित है। यह हिंदुओं के चार धामों में से एक है। बद्रीनाथ मंदिर ऋषिकेश के उत्तर में 299 किमी की दूरी पर स्थित है। बद्रीनाथ मंदिर समुद्र तल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। बद्रीनाथ धाम “चार धाम” में से एक है और वैष्णवों के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है। यह 5 में से एक बद्री भी हैं। उत्तराखंड में पांच बद्री, पांच केदार और पांच प्रयाग पौराणिक और हिंदू धर्म के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं।

भगवान बद्रीनाथ को बद्री विशाल के नाम से भी बुलाया जाता हैं। भारतीय सेना के कुमाऊँ व गढ़वाल रेजीमेंट के सैनिकों का विजय उद्‍घोष ‘ जय बद्री विशाल ‘  है।

 

badrinath dham
@yatra with yogiraj

इस धाम के बारे में एक कहावत  हे की :

” जो जाए बद्री वो न आए ओदरी  यानिके जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन  कर लेता हे, उसे  पुनः उदर यानि गर्भ में फिर आना नहीं पड़ता। पुराणों और शास्त्रों में बताया गया हे की मनुस्य को जीवन में कम से कम एक  बार बद्रीनाथ के दर्शन जरूर करने चाहिए।

बद्रीनाथ धाम की कहानी – Badrinath Dham Story

बद्रीनाथ धाम के इतिहास से संबंधित अनेक पौराणिक story है। एक महान कथा के अनुसार भगवान विष्णु इस जगह पर कठोर तपस्या कर रहे थे।

धार्मिक कथाओं के अनुसार उत्तराखंड का पूरा क्षेत्र भगवान शिव के आधीन था लेकिन एक बार भगवान विष्णु अपनी तपस्या के लिए सही जगह की खोज कर रहे थे तब उन्हें अलकनंदा नदी के किनारे का स्थान बहुत पसंद आया। लेकिन वहा पर भगवान शिव तपस्या कर रहे थे।

इसलिए भगवान विष्णु ने बाल रुप धारण कर लिया और रोना शुरु कर दिया। रोते हुवे बालक की आवाज सुन कर मां पार्वती बालक को चुप कराने बालक के पास गई। तब उन्होनें बालक से कहा कि उसे क्या चाहिए तो बालक ने अलकनंदा किनारे की जगह मांग ली।

भगवान शिव और मां पार्वती  ने बालक को वो स्थान दे दिया। इसके बाद भगवान विष्णु अपने असल रुप में आ गए और वहां पर तप करने लगे। तपस्या के दौरान भगवान विष्णु इतने ज्यादा लीन हो गए थे कि उन्हें ये भी ध्यान नहीं रहा कि उनके ऊपर बर्फ जमने लग गई है।

ये सब देख भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी को बहुत दुख हुआ और वो एक बेर के पेड़ के रुप में भगवान विष्णु के पास खड़ी हो गई। और सारी बर्फ पेड़ पर गिरने लगी। तपस्या खत्म होने के बाद जब भगवान विष्णु ने देखा की उनकी पत्नी ने सारी बर्फ खुद पर ले ली है तो उन्होनें उस स्थान को बद्रीनाथ धाम का नाम दिया।

Badrinath Dham  ka Nirman बद्रीनाथ धाम का निर्माण 

बद्रीनाथ धाम का निर्माण 8वीं शताब्दी में आदि शंकाराचार्य ने परमार राजा कनक के साथ मिलकर इस मंदिर का निर्माण किया था। इस मंदिर में स्थित भगवान विष्णु की मूर्ति को लेकर भी कहा जाता है कि उसे शँकाराचार्य ने अलकनंदा नदी से खोजा था और यहां स्थापित किया था।

बद्रीनाथ के मंदिर में स्थित बद्रीनारायण के रूप में विष्णु की काले पत्थर की मूर्ति, 1मी (3.3 फुट) लंबी है।  इस मूर्ति को भगवान विष्णु के आठ स्वंय प्रकट हुई प्रतिमाओं में से एक माना जाता है। बद्रीनाथ में स्थापित भगवान विष्णु की मूर्ति को पंच बद्री यानी बद्रीनाथ के पांच रुपों को पूजा जाता है। इस मंदिर में माता लक्ष्मी और अन्य देवी देवताओं की प्रतिमा भी है।

कब खुलते हे बद्रीनाथ धाम के कपाट

बद्रीनाथ धाम के कपाट बंद करने से पहले पूरे मंदिर को फूलों से सजाया जाता है और इसके बाद पूजारी शादी का कार्ड लेकर माता लक्ष्मी के मंदिर में जाता है और उसके बाद पूरे विधि विदान के साथ माता लक्ष्मी की प्रतिमा को भगवान विष्णु की प्रतिमा के साथ स्थापित किया जाता है। कहा जाता है कि भगवान विष्णु इन 6 महीनों में तपस्या में लीन रहते है और इनके साथ माता लक्ष्मी साथ रहती है।

ब्रदीनाथ मंदिर में तीर्थयात्री अप्रैल से नवम्बर तक आते है इसके बाद इस मंदिर के कपाट को पूरे विधि विदान के साथ बंद किया जाता है।

बद्रीनाथ धाम में लोगों की अपनी एक आस्था है।  इस मंदिर की वास्तुकला भी काफी आकर्षक है। जो यहां आने वाले तीर्थयात्रियों के आकर्षण का केंद्र बनती है। इसलिए लोग चाहे यहां इतिहास की खोज में आए या आस्था की भावना लेकर आए, दोनों ही स्थितियों में उन्हें यहां बहुत कुछ समझने और देखने को मिलेगा। 

‘ इसके साथ ही जय बद्रीनारायण, जय बद्रीविशाल, जय हो बद्रीनाथ धाम की ‘

निष्कर्ष

हमने History of Badrinath dham के बारे में लगभग सब कुछ बता दिया हे। फिर भी   कोई कमी या खामी रह गई हो या कुछ अधूरा हो तो उसके लिए क्षमा चाहता हूँ। क्यूंकि लोक कथाये हमारी बहुत ही विस्तार से होती है फिर भी आप हमें कमेंट करके बता सकते है।

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One response to “बद्रीनाथ धाम का इतिहास History of Badrinath Dham”

  1. […] बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास  […]

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