केदारनाथ धाम का इतिहास II History of Kedarnath Dham
History of Kedarnath Dham ( क्या है केदारनाथ धाम का इतिहास ? )
केदारनाथ धाम भारत के उत्तराखंड राज्य में रुद्रप्रयाग जिले में हिमालय पर्वत की गोद मैं स्थित हैँ। रुद्रप्रयाग से केदारनाथ 72 km, उत्तरकाशी से रुद्रप्रयाग 172 km, हरिदवार से रुद्रप्रयाग 161km, ऋषिकेष से रुद्रप्रयाग 141 km सड़क मार्ग से जुड़ा है। समुद्र तल से ३४६२ मीटर की ऊँचाई पर बना हुआ एक भव्य एवं विशाल मंदिर है। केदारनाथ की यात्रा गौरीकुण्ड से आरंभ होती हैं। गौरीकुण्ड से १४ किमी लंबा पक्का पैदल मार्ग हैँ। गौरीकुण्ड उत्तराखंड के प्रमुख स्थान जैसे ऋषिकेश, हरिद्वार, देहरादून इत्यादि से जुड़ा हुआ है।
केदारनाथ धाम में हर साल लाखो की संख्या में श्रद्धालुओ आते है। इस धाम के प्रति लोगो की अतुट श्रद्धा और विश्वास हैँ। केदानाथ मंदिर तीनो तरफ से पहाड़ो से घिरा हैं। एक तरफ २२००० फिट ऊँचा केदारनाथ पर्वत तो दूसरी तरफ २१६०० फिट ऊँचा खर्च कुण्ड और तीसरी तरफ २२६०० फिट ऊँचा भरत कुण्ड और दूसरी तरफ ५ नदियों का संगम हैँ।
उसमे (१) मन्दाकिनी (२) मधुगंगा (३) छीरगंगा (४) सरस्वती (५) स्वर्णगौरी
इनमें शामिल हैँ। इन नदियों में कुछ को काल्पनिक माना जाता हैँ। इस इलाके में मन्दाकिनी ही साफ दौर से दिखाई देती हैँ। मन्दाकिनी नदी के पास ही केदारनाथ मंदिर का निर्माण करवाया गया था।
पंच केदार (Panch Kedar ) :
हिन्दू धर्मो के पुराणो के अनुसर शिव भगवान ने प्रकृति के कल्याण हेतु भारत वर्ष मे १२ जगहों पर ज्योतिर्लिंग के रूप में वे प्रकट हुवे। उन १२ जगहों पर स्थित शिवलिंगो को ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाता हैं। जिनमेंसे एक ज्योतिर्लिंग केदारनाथ भी हैं। यह चारधाम एवं पंच केदारो में से एक हैँ। पांच केदारो में (१) केदारनाथ (२) रुद्रनाथ (३) कल्पेश्वर (४) मदमहेश्वर (५) तुंगनाथ इनमे शामिल हैँ।
किसने करवाया था केदारनाथ मंदिर का निर्माण ? Who got the Kedarnath Temple Constructed?
केदारनाथ मंदिर का निर्माण के लिए कई बातें कही गई इस मंदिर को १००० वर्ष से भी पुराना माना जाता हैँ। यह भी कहा जाता हे की इस मंदिर का निर्माण पांडवो के वंशज जन्मेजय द्वारा करवाया गया था। ग्वालियर से मिली राजा भोज की स्तुति के अनुसार १०वी शताब्दी में मालवा के राजा भोज ने केदारनाथ मंदिर को बनवाया था।
एक प्रचलित मान्यता के अनुसार मंदिर का जीर्णोद्वार जगदगुरु आदि शंकराचार्य ने ८वी शताब्दी में करवाया था। ३२ वर्ष की आयु में संन ८२० ई.स. में केदारनाथ के समीप उनकी मृत्यु हुवी। मंदिर के पिछले भाग में जगद गुरु शंकराचार्य की समाधी भी हैँ।
केदारनाथ धाम के बारे मे प्रचलित कथा !! ( Popular story about Kedarnath Dham !! )
केदारनाथ धाम को लेकर दो कथाए प्रचलित हैँ।
पहेली कथा :
पहेली कथा के अनुसार : केदार के शिखर पर भगवान विष्नु के अवतार महा तपस्वी नर और नारायण ऋषि यहाँ पर तपस्या करते थे। उनकी आरधना से खुश होकर भगवान शिव ने उनको दर्शन दिए। और उनकी प्राथना के अनुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में उसी स्थान पर सदा वास करने का वचन दिया।
दूसरी कथा :
दूसरी कथा के अनुसार मानाजाता हे की, माहाभारत यूद्ध को जितने के बाद पांडवो पर परिवार के सदस्यों की ह्त्या का पाप लगा जिसकी वजह से पांडव इस पाप से मुक्त होना चाहते थे। और भगवान शिव का आशीर्वाद पाना चाहते थे। भगवान शिव पांडवो की इस हत्या से नाराज थे। भगवान शिव के दर्शन के लिए पांडव काशी गए पर उन्हें भगवान शिव नहीं मिले। पांडव भगवन शिव को ढुढ़ते ढुढ़ते हिमालय तक आ पहूंचे भगवान शिव उनको दर्शन नहीं देना चाहते इस लिए वे वहां से अतः ध्यान हुवे और केदार जा बसे। दूसरी तरफ पांडव भी उनकी लगन के पक्के थे और भगवान शिव का पीछा करते करते वे भी केदार पहुंच गए।
भगवान शिव ने तब बैल का रूप धारण किया और पशुओ की झुंड में जाकर मिल गए। पांडवो को इस बात का संदेह हो गया था तभी भीम ने अपना विशाल रूप धारण करके दोनों पहाड़ो पर अपने पैर फैला दिए यह सब देख कर सभी गाय बैल तो भीम के पैरों के निचे से निकल गए लेकिन शंकरजी जो बैल के रुप में थे वे भीम के पैर के निचे से जाने को तैयार नहीं हुवै। भीमने अपने बल से बैल को पकड़ा लेकीन बैल धरती में समाने लगा। तब भीम ने बैल की पीठ का भाग पकड़ लिया भगवन शंकर पांडवो की भक्ति और दृढ संकल्प को देखकर बहोत खुस हुवे उन्होने उसी समय दर्शन देकर पांडवो को पाप से मुक्त कर दिया।
उसी समय से भगवान् शिव बैल की पीठ की आकृति पिंड के रूप में श्री केदारनाथ धाम में पूजे जाते हैँ। ऐसा भी मना जाता है की जब भगवान् शंकर बैलके रूप में अंत: ध्यान हुवे तब उनके धड़ के ऊपर का भाग काठमांडू में प्रकट हुवा। अब वहा पशुपति नाथ का प्रसिद्द मंदीर है।
Kedarnath Temple Architecture – Design ( केदारनाथ मंदिर का आर्किटेक्चर डिजाइन )
केदारनाथ मंदिर ८५ फिट ऊँचा और १२७ फिट चौड़ा हैं। इस की दीवारे १२ फिट मोटी है और बेहत मजबूत पत्थरो से बनाई गई हैं। यह मंदिर कत्यूरी शैली के आधार पर बनाया गया है इस शैली के द्वारा निर्मित मंदिरो के पत्थरो पर स्फटिक की मात्रा अधिक होती हैं।
विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ मंदिर ३४६२ मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं। यह मंदिर एक ६ फ़िट ऊँचे चोकोर चबूतरें पर बना हुवा है। यह हैरतंगेज करने वाली बात है की इतने भारी पत्थर को इतनी ऊंचाई पर लाकर तराश कर, किस प्रकार मंदिर बनाया गया होगा जानकारों का मानना हे की पथरो को एक दूसरे से जोड़ने के लिए Intetlocking तकनिकी का इस्तेमाल किया गया होगा। यह मजबूती और तकनिकी ही मंदिर को बीचो बिच खड़े रहने में कायम बनाती है।
मंदिर के मुख्य भाग में मंडप और गर्भ गृह के चारो तरफ प्रदक्षिणा पथ है। मंदिर के बाहर श्री नंदी बैल वाहन के रूप में बिराजमान है। श्री केदारनाथ मंदिर पर उपथित दिव्याप्पनशीश भी मुख्या कलश भीतर से मोती ताम्रा धातु तथा बाहर से स्वर्ण धातु का बनाया गया था जो की वर्तमान समय में मंदिर पर उपस्थित नहीं हे कुछ वर्ष पूर्व वह दिव्य कलश मनुष्य की लालच का शिकार हो गया और वर्तमान में उस कलश के स्थान पर जमलोकी श्रेणी का कलश स्थापित कीया गया है मंदिर के प्रागण में द्रोपदी सहित पांच पांडवो की मुर्तिया है। मंदिर के गर्भ गृह में नोकीली चट्टान भगवान् शिव के सदाशिव रूप में पूजी जाती है।
केदारनाथ धाम के कपाट कब खुलते हे ? When do the doors of Kedarnath Dham open?
केदारनाथ यात्रा में जाने के लिए हर वर्ष मदिर के खुलने की तिथि तय की जाती है। मंदिर के खुलने की तिथि हिंदू पंचांग की गणना के बाद ऊखीमठ में स्थित ओंकारेश्वर मंदिर के पुजारियों द्वारा तय की जाती है। केदारनाथ मंदिर की उद्घाटन तिथि अक्षय तृतीया के शुभ दिन और महा शिवरात्रि पर हर साल घोषित की जाती है। और केदारनाथ मंदिर की समापन तिथि हर वर्ष नवंबर के आसपास दिवाली त्योहार के बाद भाई दूज के दिन होती है। इसके बाद मंदिर के द्वार शीत काल के लिए बंद कर दिए जाते हैं।
शीतकाल में केदारघाटी बर्फ़ से ढँक जाती है। केदारनाथ धाम को खोलने और बन्द करने का मुहूर्त निकाला जाता है, किन्तु यह सामान्यत: नवम्बर माह की 15 तारीख से पूर्व (वृश्चिक संक्रान्ति से दो दिन पूर्व) बन्द हो जाता है और 6 माह बाद अर्थात वैशाखी (13-14 अप्रैल) के बाद कपाट खुलता है।
ऐसी स्थिति में केदारनाथ की पंचमुखी प्रतिमा को ‘उखीमठ’ में लाया जाता हैं। इसी प्रतिमा की पूजा यहाँ रावल जी करते हैं। केदारनाथ के पुजारी मैसूर के जंगम ब्राह्मणीय होते हैं।
केदारनाथ धाम में नित्य पूजा क्रम :-
केदारनाथ का मंदिर आम दर्शनार्थियों के लिए सुबह ६ बजे खुलता हे। और दोपहर ३ से ५ बजे तक यंहा विशेष पूजा अर्चना होती हे। इस के बाद विश्राम के बाद मंदिर बंध किया जाता हे। और पुनः शाम को ५ बजे मंदिर भक्तो के दर्शन के लिए यह मंदिर खोला जाता हे। भगवान् शिव की प्रतिमा का विधिवत शृंगार करने के बाद ७:३० बजे से ले कर ८:३० बजे तक हर रोज यहा पर आरती की जाती हे रात को ८:३० बजे केदारेश्वर ज्योर्तिलिंग का मंदिर बंध किया जाता हे।
Kedarnath Flood ( आखिर बाढ़ से केसे बचा केदारनाथ धाम ? ) Bhim Shila
जून २०१३ उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में अचानक ही बाढ़ आ गई और भूस्ख़लन भी होने लगा जिसका सबसे अधिक प्रभावित केदारनाथ धाम हुवा। ये आपदा इतनी भयानक थी की इसके आसपास बने होटल और धरमशाला सबकुछ तहस नहस हो गया लेकिन इस ऐतिहसिक मंदिर का मुख्य हिस्सा और सदियों पुराना मंदिर का घुमट सही सलामत रहा। प्रलय के बाद भी मंदिर का उसी भव्यता के साथ खड़े रहना किसी आश्चर्य से काम नहीं हे। आजभी लोग उसे किसी चमत्कार से कम नहीं मानते।
बाढ़ और भूस्ख़लन के बाद बड़ी बड़ी चट्टानों मंदिर के पास आने लगी और वही रुक गई। उसी में से एक चट्टान आ गई जो मंदिर का कवच बन गई इस चट्टान की वजह से मंदिर की एक ईंट को भी नुकसान नहीं हुवा इसके बाद इस चट्टान को भीमशिला का नाम दिया गया। यह चट्टान मंदिर परिक्रमा मार्ग के बिलकुल पीछे हे।
‘ इसके साथ ही जय केदारनाथ धाम की , जय भोलेबाबा की , जय हो शिव शंकर ‘
निष्कर्ष
हमने History of Kedarnath Dham के बारे में लगभग सब कुछ बता दिया हे। फिर भी कोई कमी या खामी रह गई हो या कुछ अधूरा हो तो उसके लिए क्षमा चाहता हूँ। क्यूंकि लोक कथाये हमारी बहुत ही विस्तार से होती है फिर भी आप हमें कमेंट करके बता सकते है।
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